कोरोना और क्रांतिकारी स्पेन की सीख

1936 में स्पेन में जंग शुरू हुई, और जब मालिक और नेता अपने घर और फ़ैक्टरिया छोड़ भाग खड़े हुए तो मजदूरों ने उनपे कब्ज़ा करा और उन्हें चलाया. आधा स्पेन एक साल पूरी तरह मजदूरों के हाथ में था. फैक्ट्री, ट्रैन, खेत, यहाँ तक की बाल काटने वालो की दुकान सब मजदूरों के हाथ में थे. स्वास्थ व्यवस्था भी।

जादातर मजदुर वर्ग के लिए ये सेवाएं पहली बार खुली थी. बड़े शहरों में और हर गॉव में और यहाँ तक कि ऐसे इलाके जहा पर सिर्फ 2 या 3 घर थे वहां भी क्लीनिक खोले गए और स्वास्थ कर्मचारियों ने अपनी यूनियन के ज़रिये इन्हें संचालित करा. स्वास्थ एक निजी व्यवसाय से बदल के सामाजिक संगठन में तब्दील हो गया था।

लगभग हर इलाज मुफ्त था. जो कुछ ऑपरेशन्स का पैसा लिया जाता था वो यूनियन के पास जाता था. इस पैसे का क्या करना है इसका फैसला वर्कर्स खुद लेते थे. कुछ ही महीनो में बार्सिलोना शहर में 6 नए अस्पताल खोले गए.

इसके अलावा और भी आयामों में बदलाव आया. एक स्वास्थ्य कर्मचारी ने बाद में लिखा था की,

“वो बड़े डॉक्टर जो हफ्ते में एक बार अस्पताल में आया करते थे, उन्हें तख़्त से गिरा दिया है. वो नामी सफ़ेद सूट वाले हॉस्पिटल की गलियों में जिनके आगे पीछे 3-4 लोग गर्दन नीचे करके, उनके लिए सामान पकड़ कर चलते है, वो उच्च-नीच अब यहाँ इतिहास हो गई है. अब यहाँ सब साथी है और बराबर है”

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