राज्य के लिए हमेशा उसका सबसे बड़ा दुश्मन उसके देश के लोग होते है. राज्य चाहता हे ज्यादा से ज्यादा नियंत्रण समाज और इनसान के हर अंग पर, और लोगों को अमूमन ये हरकतें पसंद नहीं आती.
इसका हल अच्छी शिक्षा और मीडिया में मिला – ये लोगों को सिखा देते हे कि क्यो समाज मे गैर-बराबरी के बारे मे हम कुछ नहीं कर सकते और केसे राज्य लगों का गुलाम नहीं लोगों को राज्य की हर जरूरत पूरी करनी हे. राज्य जब बोले लाइन मे लगों, राज्य जब बोले बुके मरो और राज्य जब चाहे आपने घर और जमीन खाली करो.
और जब ये व्यवहार नियंत्रण के औजार काम ना आये तो राज्य अपना असल रूप दिखाने से नहीं झिझकता: वहशी जोर और हिंसा. नियंत्रण का सबसे साफ रूप.
आज पुलिस की हिंसा और उसको वाजिब करार देने वाले राष्ट्रीय झूठ को कई लोग पहचान रहे है.
कई लोग समझ रहे है की सरकार अपनी ताकत बनाए रखने के लिए डर पैदा कर हिंसा इस्तमाल करती है.
सवाल ये भी है की फिर जिस डर के आधार पे ये सरकार अरबो-खरबो रुप्पे फौजिकरण पे लगा रही है क्या वो भी ऐसे ही सरकारी झूठ के कारण है?
क्या पाकिस्तान असल में एक “दानव” हैं जिससे बात-चीत के माध्यम से कुछ हल नहीं निकाला जा सकता?
और अगर धर्म जाती के आधार पे लोगो को बांटना गलत है तो एक लकीर के किस पार पैदा हुए उसपे बाटना कितना सही हो सकता है?
बांग्लादेश में फिर फैक्ट्री में मजदूर मारे गए, पाकिस्तान में भी और दिल्ली में भी. सब देशों के मालिक वर्ग ने साथ में बेठ के वर्क-कंडिशंस पे नियम बनवाए है – IMF-WTO के साथ.
अगर सरकार मीडिया की मदद से लोगों के आँखों के सामने क्या हो रहा है उसको झुठला सकती है तो ये बंद कमरों में और दूर बॉर्डर पे या बस्तर और कश्मीर की सच्चाई और हिंसा पर कितना विश्वास किया जाना चाहिए?