जैसे जैसे इस देश में चीजें और ज्यादा घिनौनी और वेह्शियना होती जा रही हैं, इस घिनोने समाज और राजनीति के पीछे की कुछ सचाई बाहरी रूप के पीछे छुपती जा रही हैं. यह की, 2014 में बीजेपी के जीतने का एक बड़ा कारन (शायद सबसे बड़ा काऱण) बड़े उतयोगपति और अरबपति वर्ग की फंडिंग, और उनके न्यूज़ नेटवर्क का बीजेपी को समर्थन था.
यह की, इस उद्योगपति और अरबपति वर्ग को कुश रख कर ही यह पार्टी ताकत बनाए हुए है. अरबपतियों और बड़े उद्योगों के लिए टैक्स माफ़ी, ‘इज़ ऑफ़ डूइंग बिसनेस्स’ के नाम पर कानून खोखले करना, मजदूर वर्ग की बची कुछ ताकत को भी कुचल देने वाले नए श्रम कानून लागु करना, वगेरा वगेरा।
यह अरबपति वर्ग और बीजेपी की सांठगांठ के आलावा हिंदुत्व संगठनो और अरबपति वर्ग का एक और आम उदेश है: माइनॉरिटी और गरीबों के लिए बानी पोलिसिओं को हटाना, ताकि सरकार की जगह कम्पनिया ले सकें मुनाफे के लिए. जब हिंदुत्व संगठन नेहरू पर कीचड़ उछालते है तब वो इस देश के अरबपति वर्ग को बड़ी ख़ुशी देता है, क्यंकि वो कीचड एक ऐसी आर्थिक विवस्था जो गैर-बराबरी काम करने की कोशिश करती है और कंपनियों पर सामाजिक न्याय के चलते कुछ रोक लगाती है, उस विचार पर भी वो कीचड़ गिरती है.
हम संविधान को चाहे कितनी भी बार सीधा पढ़ लें या उल्टा करके, ये पैसे और राजनैतिक ताकत की सचाई है, जिसको आज की उथल-पुथल में याद रखना ज़रूरी है. जबतक अरबपति वर्ग को ये सरकार खुश रखेगी, उनको और अमीर बनाती रहेगी, और ताकत देती रहेगी, और लोगों को आर्थिक मुद्दों से दूर रखेगी, तब तक इसका ही राज रहेगा.
यह भी सच है की यह इस्थिति बनी ही इस्सलिये थी क्योंकि जादातर मुद्दे जो काम करने वाले वर्ग के जीवन पर असर डालते है उन् पर बात करना बंद कर दी गई थी, क्योंकि वो कंपनियों को, उनके न्यूज़ चैनल्स को पसंद नहीं. तो ऐसे में ये कोई चौकाने वाली बात नहीं है की जब सारी राजनैतिक पार्टिया जनता को आर्थिक मुद्दे से दूर रखना चाहती है थो पेचान की राजनीति में सबसे कट्टर पहचान की राजनीति करने वाली पार्टी की सबसे आगे रहेगी.