भारत में रह रहे 50% परिवारों के पास औसत तौर पर Rs.66,000 की पूंजी है – जो एक बड़ा झटका आने पर परिवार को सड़क पर ले आता है. इस देश के सबसे अमीर 10% लोगों के पास इस देश की 65% संपत्ति है – और उनमें से भी सबसे अमीर 1% लोगों के पास देश की संपत्ति का 33% हिस्सा है.
समाज की संपत्ति के बंटवारे में गैरबराबरी सिर्फ ग़रीब, मज़दूर, मध्यम वर्ग और अमीर “बोस” कॉर्पोरेट वर्ग के बीच ही नहीं है – ये जाती की बुनियाद पर भी बटी है. हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट के हिसाब से इस देश के 50% अनुसूचित जनजाति से लोग गरीबी रेखा के नीचे है, ये आंकड़ा अनुसूचित जाती के लिए 33.3% है और पिछड़ा वर्ग के लिए 27.2% है. जबकि देश की बची हुई जनसंख्या में 15.6% लोग गरीबी रेखा के नीचे है. ये साफ़ है की इस देश में अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाती बेहद मार खाई हुई है उस समय जब की देश में हर जाती और धर्म के लोग गैरबराबरी और गरीबी से ग्रस्त है.
यह हकीकत के बावजूद अक्सर लोगो से सुना है की लेकिन वो मेहनत करते है तो अमीर है, वो तेज़ दिमाग है, वग़ैरा-वगेरा. इस हालात को बनाए रखने के लिए जो चीज़े हमें सिखाई गई है उन्हें दोहराते है.
लेकिन ये 10% और 1% सबसे अमीर लोग इतनी पूंजी का क्या करते है? घर में गेहूं चावल भर कर रख लेते है? फ्रिज ख़रीद लेते है? सबसे महंगी कार और हवाईजहाज खरीदने के बावजूद इस वर्ग के पैसे में कमी नहीं आती तो फिर ये पूँजी का क्या होता है?
इस सम्पति से मिलती है राजनीतिक ताकत। खरीदते है समाज के संसाधन – कॉलेज, पानी, रेलवे स्टेशन, हवाई अड्डे, बिजली उत्पाद करने वाले बिजली घर. साफ़ लफ़्ज़ों में कहें तो ये देश को खरीदते है.
आप में से अगर किसी को लोकतंत्र शब्द सुना सुना लग रहा हो तो गुज़ारिश करूँगा की सोचने की कोशिश करें की ऐसे हालात में लोकतंत्र की क्या इस्थिति हो सकती है – याद दिला दूँ की इस देश में राजनैतिक पार्टियों को कॉर्पोरेट्स बिना हिसाब पैसा दे सकते है.
यह भी याद दिला दूँ की ये 10% और 1% का वही अमीर वर्ग की है जिनकी कार और मॉल के लिए आज के शहर बने है, यह वही वर्ग है जो इस देश के कार्बन उत्सर्जन और प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है. ये लूट है. ये खून है. ये गैरबराबरी है.