मीडिया लोकतांत्रीकरण, ना कि सेंसरशिप: भड़काऊ और नफ़रत से भरी बातें रोकनि हैं तो आर्थिक मुद्दों पर ध्यान देना होगा

कल सुदर्शन टीवी न्यूज़ के कार्यक्रम पर रोक लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि “भारत में अमेरिका की तरह जर्नलिस्ट्स को अलग से कोई आज़ादी नहीं दी गई है”. और यह की “लोकतंत्र होने के लिए कुछ स्टैंडर्ड्स और मानक होने चाहिए”. लेकिन उनमें से एक मानक जर्नलिस्ट्स की या बोलने की आज़ादी नहीं है. आए दिन लोकतंत्र की रोचक परिभाषा देखने को मिल रही हैं.

कार्यक्रम पर बैन लगाने का कारण ये बताया गया कि एक समुदाय (मुस्लिम) के लोगों को गलत और अपमानजनक तरीके से पेश करा जा रहा था. कोर्ट के फैसले से कुछ समय के लिए हजारों में से एक चैनल पर ऐसी नफरत भरी बातें तो बंद हो गई लेकिन, ये भी मिसाल फिर से कायम हो गई की कोर्ट चाहे तो किसी भी भाषा को किसी एक समुदाय के खिलाफ मान कर उसपे रोक लगा सकता है और कार्यवाही कर सकता है.

तुषार मेहता ने कोर्ट में ये बताया कि कई ऐसे चैनल है जहाँ “हिन्दू आतंकवाद” की बात की जाती है. क्या कोर्ट उन् पर भी रोक लगाएगा? कोर्ट का जब दिल चाहे लगाता है और, लगा सकता है.

ये नफ़रत भरी बातें आती कहा से है और उनका असर क्यो होता है?

पिछले 10-15 सालों में भारत की जीडीपी जेसे जेसे बढ़ी, उस ही तेज़ी से बेरोज़गारी और गैरबराबरी भी बढ़ी. जो एक मध्यम वर्ग ऊपर आया था वो भी नीचे जाने लगा और जो मध्यम वर्ग में शामिल होने के सपने देखते थे उनके सपने खोखले लगने लगे. इस वर्ग में से कई हिन्दू भी है जो 3 या 5 साल से UPSC की नौकरी की रेस मे भाग रहे है.

जिनके इस तरह से अपने भविष्य को ले कर सपने टूटे हो उनको एक समुदाय में अपना दुश्मन देखने में आसानी होती है.

जस्टिस जोसफ ने ये बात उठाई कि मीडिया कंपनियों का आर्थिक मॉडल जब टी.र.प. पर निर्भर हो तो ऐसी चीज़े ज़ादा होती है. दूसरा कारण सरकारी और दूसरे कॉर्पोरेट विज्ञापन से मुनाफा भी है. क्यंकि पिछले कुछ सालों से नफरत पर आधारित टीवी समाचार का मॉडल कारगर साबित हो रहा है, तो लाज़िम है इसे सब अपना रहे है.

मीडिया लोकतंत्र का सब्ज़े ज़ररुई हिस्सा है – इलेक्शन से भी ज़ादा. क्यंकि आप वोट उस आधार पर देते हो जो आप जानते हो. तो क्या लोकतंत्र में मीडिया को मुनाफे के लिए बाजारु बनाया जा सकता है? या फिर मीडिया को सामाजिक रूप से नियंत्रित किया जाना चाहिए. जैसे कई देशों में होता भी है, जहां लोकल समुदाये साथ मिल कर कार्यक्रम बनाए – मुनाफे और मंत्रियो और कम्पनियो से अलग हट कर.

एशियानेट न्यूज़ नेटवर्क लिमिटेड, या ए.एन.एन. जो भारत में कई चैनलों का नियंत्रण करती है का मालिक भाजपा संसद, राजीव चंद्रशेखर है. न्यूज़ लाइव का मालिक बीजेपी मिनिस्टर हिमंता बिस्वा शर्मा की पत्नी रिणीकी भूयां सरमा हैं.लोकमत के मालिक कांग्रेसी नेता हैं. नेव्स18, फर्स्टपोस्ट के आलावा इंडियकास्ट मीडिया डिस्ट्रीब्यूशन प्राइवेट लिमिटेड, बालाजी फिल्म्स और इंफोमेडीअ प्रेस का मालिक अंबानी परिवार है.

ये वो ही नेता और अरबपति हैं जिनकी नीतियों के कारण सरकारी और अब प्राइवेट नौकरिया इस देश में मिलना बंद हो गई है, इन नीतियों के बारे मे हम ना सोचें और इस बारे में कुछ ना करें इसलिए मुसलमान या दलित को दुश्मन बताना ज़रूरी हो जाता है.

कुछ छोटे मोटे चैनल कुछ दिन बंद भी हो जाए तो भी ना ये सचाई ना ये नफरत फैलाना बंद होगा. और लोगों को और मीडिया को शांत करने की ताकत का इस्तेमाल लोकतंत्र और गरीबों के खिलाफ ही होगा. बेरोज़गारी और मीडिया में कंपनी और नेताओ की ताकत खत्म करने की लंबी और मुश्किल लड़ाई से बचने के लिए चीज़े बन करने का शॉर्टकट नहीं लिया जा सकता.

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